Sunday, April 25, 2010

कुछ अलग ही ये generation है,

ठाठ अलग है बात अलग, कुछ अलग ही ये generation है,

“आज की सोच”, “मेरा क्या”, “limelight ” ही obsession है,

नक्सलवाद या बाढ़ के माने, अब कुछ मुस्किल से लगते है,

Filmstars के affairs की gossip,इनकी news का विश्लेषण है



माँ बाप से एक gap बना हुआ है, जिसमे कुछ frustration है,

दो साल में सिर्फ़ तीन affairs! ज़िंदगी के अब नये equation है,

Mythology सब boring है, History के lesson भी irritation है,

हनुमान है cartoon अब, महाभारत बस जैसे playstation है,





waste है बातें राजनीति की, और कहना महेंगा ये बेसन है,

जो सिर्फ़ रातों को जाग सके, life ऐसी fasttrack celebration है,

traffic signal पे भूखा बचपन जब , थैई थैई कर नाचे तब

wine की price hike में छुपा कोई इनका food inflation है



हर साल नये tattoo पे नये नामो का impression है,

राधा-कृष्ण का प्यार भी "no strings attached" relation hai,

शायद में ही समज नही पाया, ये क्या change है क्या fashion है,

मुझको लगता रहता भारत के युवा बन रहे पश्चिम के imitation है

Friday, April 23, 2010

माँ तेरी बातें

है याद मुझे कहानी किससे वो बचपन के,
संगीत जो चमच बजाती थी वो बरतन पे,
सत्यवादी एक राजा और था भीम बलवान,
याद है धीरे कछुए ने ली खरगोश की शान,

वो याद मुझे है अचरज एलिस की बातो मे,
चूहे, बंदर सब नाचे थे जो शेरो की बारातो में,
नागराज और एक चाचा साबु संग ग़ज़ब थे,
बेगानी शादी में वो अब्दुल्लाह नाचते तब थे,

हररोज़ मुझे कहानी सुना तू आराम से सोती,
और मेरे बचकाने सवालो पे अपनी नींद खोती,
पर माँ, ये दुनिया उन कहनिओ से अलग है,
सच बता माँ, क्या तू ये देखती तो खुश होती?

झूठ भरा है सब मे यहाँ पे, निर्धन सारे बेचारे है,
दौड़ लगा सब भाग रहे है, किसी घड़ी के मारे है,
तेनाली सारे भूखे मरे और कौए खाते है मोती,
सच बता माँ, क्या तू ये देखती तो खुश होती?

जीवन की रंगीनियो में, प्यार का कोई रंग नही,
नही आए राजकुमार, रेपूंज़ेल टावर पे सड्ती रही,
काँटे उगते है , माँ जब तू यहाँ आम है बोति,
सच बता माँ, क्या तू ये देखती तो खुश होती?

रामराज की बात नही, रामनाम की राजनीति,
बडो का आदर सिखाते श्रवण की नही आपबीती,
कहते ये बच्चे पापा को प्रवीण, तुजको "ज्योति",
सच बता माँ, क्या तू ये देखती तो खुश होती?

जिस "बापू" की बातों में तुजको नयी आस थी दिखती,
सत्य, अहिंसा प्रेम सभी यहाँ उसकी नोटो पे बिकती,
सूरज-कंचन, धूंप-चाँदी, वो सुबह कभीना होती
सच बता माँ, क्या तू ये देखती तो खुश होती?

ऐसी ये दुनिया है, जहाँ तेरी कहानी कोई सच नही
कोई सीख ना चलती है, सच मानी वो भी सच नही,
फल की चिंता रहती है, ना फल, ना चैन हम पाते है,
माँ तूने जो भी सिखाया, किसी और दुनिया की बातें है

(quite a few spelling mistakes here, on a review :). Its difficult to type in English and see it getting typed in Hindi)

ख्वाबिदा हम

पिंजरो के संग उड़ते कौओ के, फलक सी है दुनिया ये,
तू भी एक क़ैद परिंदा है, यहाँ में भी एक परिंदा हू,

जब जिस्म जलाते रूहो को, झूठ से मन बहलाके बोलो,
तू भी एक जो ज़िंदा है , यहाँ में भी एक जो ज़िंदा हू,

बड़े घरो में अकेले रहनेवालों के, इस अंजान शहर का,
तू भी तो एक बाशिंदा है, यहाँ में भी एक बाशिंदा हू,

जिससे जले बच्चे और लूटे शर्म, ऐसी पहचान से अपनी ,
तू भी तो शर्मिंदा है, यहाँ में भी एक जो शर्मिंदा हू,

बेजान खन्डर के ढाँचे में बैठ, अब राजमहल की बातों में
तू भी तो ख्वाबिदा है, यहाँ में भी एक जो ख्वाबिदा हू

में तब से फूल तोड़ता हू

जब आँगन में छोटे पौधो पे,
गुलाब के एक दो फूल लगते थे,
जब कांटो की चुभन पे मम्मी,
गीला कपड़ा लगा फूँक से सहलाती थी,
में तब से फूल तोड़ता हू

फिरउन फूलों को जामुन के संग,
लंच बॉक्स में स्कूल ले जाया करता था
पर वहाँ दोस्तो को मिलने से पहेले,
हर फूल मूर्ज़ा के मरता था,
जब नानी ताज़े फूलों को मंदिर में सजाती थी,
में तब से फूल तोड़ता हू

फिर जब कुछ पौधे पेड़ बने,
तो धूप से बच के संग में उसके,
पेड़ो की छाँव में मूँगफली ख़ाता था,
जब मोगरे की महेक उसको प्यारी लगती थी,
में तब से फूल तोड़ता हू,

और एक दिन किसी बारात के गेंदे को देकर,
मैने तुमसे जीवन भर का साथ माँगा था,
तुम ना मिली पर सारे गुलाब तुम्हारे,
अब भी तुमपे लिखी कविताओ के बीच सोते है,
जब से बँध कविताओ में महेक सारी लगती है,
में तब से फूल तोड़ता हू

अब सब फूल मुरझा गये है,
एक ऋतु है, और संग कोई नही,
कल की ही बात है,
चल बसा वो एक दोस्त जो बुढ़ापे तक साथ रहा था,
में पोते को ले उसके घर गया तो,
पोते को देखा उसकी फोटो पे से फूल तोड़ते,
पास वो आके बोला दादाजी,
हम आपके लिए ऐसा ही फूल रखेंगे,
बनावटी है तो कभी मुरझाएगा नही,
वो अब से फूल तोड़ रहा है,
में तब से फूल तोड़ता हू,
सोचता हू,
अगर ज़िंदगी में सारे रिश्ते
बनावटी फूलों से सजाए होते,
तो ख़ूसबु ना होती पर कुछ कभी मूरजाता नही

मेरे सपनो में परवाज़ नही

जो पड़ोसी के बच्चे को खिलाए,जो अपनी संतान को जग से मिलाए,
गुज़रते जनाज़ो को देख रुके जुका सर,अब वो लोग नही वो बात नही,

सब कल की बातो से है, है सब गीत पुराने, थे पाँच रहे जो संग हमेशा,
टेबल की थाप पे, मेरे सुर में गाते थे, अब वो दोस्त नही वो साज़ नही,

अपनी जन्नतो के मारे है हम भी, बेकारी के बादशाह है हम खास नही,
मेरी माँ,बाबूजी मेरे, मेरा बचपन वो यार मेरे, पूंजी वॉ मेरे पास नही,

आरक्षण है, संरक्षण नही, जगह जो भी मिलती है जैसे हो दान मिला,
परमेश्वर है लक्ष्मी पे हाथ उठाते, रोकने वाली वो बच्चों की आवाज़ नही,

आज़ादी की बात छिड़ी तब, माता की जय बोल शहीद हर गली से उभरे,
इंक़लाब की है ज़रूरत आज हमे तो, अब जो बचे भगत वो जाँबाज़ नही,

बह दुनिया के सागर में अपने जहाज़ ने जो जीते थे अब वो ताज नही,
मेरी काग़ज़ की कश्ती डूबती जाती है, अब मेरे सपनो में परवाज़ नही

छोटू का सिलसिला

राम-राम, अस्सलाम-वाले-कू, गुड मॉर्निंग सर,
में छोटु, बेचता हू सेठ की बनाई चाइ तैयार कर,
कोई "साला", कोई "ठिन्गु", कोई गाली दे हस्ता है,
में सबको सलाम करता हू, रूपीए ले खिसकता हू,
किसीने नही पूछा, क्या है तेरी स्कूल की पढ़ाई का?
ढाई रूपीए दे, चाइ पे लेते मज़ा चुनावी लड़ाई का,
कोई कभी प्यार से एक बार पूछे भी घर कहा है?
सुन फूटपाथ घुर्राते दूर रहे पास क्या कर रहा है?
कभी किसी को मेरी बात राज़ ना है आई यहा,
में छोटू हू, में बेचता हू सेठ की गर्म चाइ यहाँ,

फिर एक रोज़ सामने की होटेल में हुड़दंग मचा,
किसी आतंकवादी ने था ग्राहक का स्वांग रचा,
अफ़रा तफ़री मची हुई थी गोली की आवाज़ो में,
कितनी लाशें बिछी पड़ी थी वहाँ के दरवाजो में,
में तब वॉचमेन को चाइ पिलाने गया हुआ था,
दौड़ के जान बचाई थी, सच, जान का जुआ था,
कॅमरा किसी चॅनेल का हमको देख गया था तब,
कुछ लोगो का हाथ पकड़ दौड़ बहारे आए थे जब,
फिर सब आके घेर गये मुझे, बोला में "हीरो" था,
एक छोटी सी जान से जाने बचाई था में वीरो सा,
में डर से काँप रहा था, वो बोले अपनी बात सुना,
"कैसा लग रहा है?" "कौन घर में रहता साथ सुना"
तुम हो हमारी कवर स्टोरी, बता हुआ कब कहाँ
में छोटू हू, में बेचता हू सेठ की गर्म चाइ यहाँ,

लाशों को छोड़ दरवाज़ों में, मुझको सारे पूच रहे थे,
कुछ नेता, मीडीया सब, फिर नाम मेरा बुझ रहे थे,
"ये देखिए ये जाँबाज़ बच्चा", "थोड़ा पाउडर लगा दे"
मेने सच बता दिया, में ने कुछ नही किया कही पे,
में डरा हुआ था, में भाग रहा था सब के साथ वहाँ,
में छोटू हू, में बेचता हू सेठ की गर्म चाइ यहाँ,
फिर एक साहब आया बोला किसको उठा लाते हो,
बनाओ दूसरा बच्चा स्टोरी, इसकी तनख़्वा पाते हो,
फिर किसीको पैसे दे बुलवाया, पूछा तुमने क्या सहा,
उसने आँसू संग होसला दिखा सबकुछ ठीकठाक कहा,
में फिर डर के उस ज़हरीली ठंडी में, रोड पे सोने चला,
वो भीड़ गा रही थी अब भी उस छोटू का सिलसिला,
उस रात फूटपाथ -माँ ने आके सपनो में यही कहा
तू छोटू है, तू बेचता है अपने सेठ की गर्म चाइ यहाँ
तू वो खून वो मौत ना भूलना, और ऐसे मत डरना,
अगली बार छोटू नही बनना, छोटू की तू छबि बनना
अब सोजा कल सुबह बहुत भीड़जमा होगी यहाँ,
तू अपना काम करना, बेचना सेठ की गर्म चाइ वहाँ

खुद से चाहिए

साइकल पे तेज़ हवाओं में पाया था जो,
चेहरे पे वोही सुकून, मुझे अब रुक के चाहिए

हवा से भड़क उठा, बुझ के पड़ा था जो,
होसला मुझको उस सा, अब दुख से चाहिए,

तू है खुदा? था कहा दुनिया की मौत पे,
शिनाख्त तेरे वजूद की, अब रुख़ से चाहिए,

हर जुंग की वजह है, दानापानि किसी का,
मुजको उम्मीद अमन की, अब भूख से चाहिए,

सर कटा सकते थे आज़ादी की खोज में,
तेरी पनाह में वोही मुझे, अब झुक के चाहिए

अपनो की भीड़ मे , में में नही रहा,
अपनी ही पहचान मुझको, अब खुद से चाहिए,

Love For Couplets

There is something very specific about poetry in Indian language that is different from its English counterparts - The art of writing poetry in couplets. A couplet that is complete in itself, in its meaning and its story and also fits in to the overall poetry made out of these beautiful couplets together. I am not thinking hard as I am typing this. I would like to go through a few of my favourite couplets as they come to my mind. I am not keeping it constrained by a theme / poet / Language. Ghazal writing - the form for which the couplets are created is a very strong form created in Urdu and the style has over the years been adopted by Hindi and Gujarati poets too. Many poets believe that Ghazal's are the most heart touching write-ups of a poet, as Mariz (A Gujarati Poet) writes :
હોઈ ઉર્દૂ ની ઓથ કે હોઈ ગુર્જરી ની ઑ મરીઝ,
ગઝલો ફકત લખાઈ છે, મોહબ્બત ની ઝબાનમા
Which can be roughly translated to :
चाहे लू उर्दू की या लू गुजराती की कसम मरीज़,
ग़ज़ले सिर्फ़ लिखी जाती है , मोहब्बत की ज़ुबान में
And there have been years of poetry that has experimented in this mixing of languages. One of the best and the one of the oldest that I remember is by Amir Khusro (1253-1325). Thinking that this kind of mastery of mixing persian with Braj bhasa existed centuries back, humbles our mind (In the first verse, the first line is in Persian, the second in Brij Bhasha, the third in Persian again, and the fourth in Brij Bhasha.)
ज़ीहाल-ए मिस्कीन मकुन तघाफुल,
दुराए नैना बनाए बतियां;
की ताब-ए हिजरां नदाराम ए जान,
ना लेहो काहे लगाए छातियाँ
Which can be translated (Source : Wikipedia) as :
Do not overlook my misery
Blandishing your eyes, and weaving tales;
My patience has over-brimmed, O sweetheart
Why do you not take me to your bosom?
There are a lot of couplets like these that I admire and are timeless.And I truly belive that writing something contemporary is as difficult as such timeless pieces. The one that I like in the contemporary ones is a couplet by Javed Akhtar on the burgeoning city life :
उँची इमारतो से मकान मेरा घिर गया,
कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गये
And the poets keep on writing a lot on God, on lost love, on philosophies of life, on emotions, on love and everything that they see around. Every poet has a past and has a story to tell along with. Nida Fazli whose life like that of poets like Saahir had been impacted by parition of our country writes about worshipping God in these beautiful lines :
Ghar se Masjit bahut door hai, chal aa yun kar le,
Kisi Rote hue Bachhe ko hasaya Jaye,
Nida fazli has written such beautiful verses, including the idea of innocence of kids that most of those lines have been memorable for me. For example.
Bachhon ke chhote haathon ko, Chaand Sitare chu lene do,
Chaar Kitaabein padh kar ye bhi ham jaise ho jayenge.
I remember a similar nice line from Javed Akhtar that talks of how the kids of today's world are getting smarter :
Chaand mein budhiya Buzurgo mein khuda dekhe,
Bhole itne bhi ab ye bachhe nahi hote
This idea of conveying the start and end of life in terms of childhood and old age has been used by umpteen number of poets and have been used really well. But there were poets and there was Ghalib. The great Mirza Ghalib, who with an air of above the world feeling, wrote :
Baazicha-e-Atfal hai duniya mere aage,
Hota hai sab-o-roz tamasha mere aage,
(Baazicha - e - Atfal = Playground of kids)
And many poets who have been disenchanted with the society and life and the world in general have written things that would mean a world to many poetry lovers like us. Saahir writes beautifully about the idea (And this was sung by Mhd.Rafi with equal finnesse)
Tang aa chuke hai kasm-e-kash-e-Zindagi se hum,
Thukra na de jahaan ko kahi bedili se hum
Saahir famously had a life of failed love affairs and this also goes with lives of many other poets. Poetry hence is created from the indepth feeling of not getting the beloved. Mariz explains how his words have become his own enemies in this couplet,
Mujh par Sitam kari gaya, mari ghazal na sher,
Vaanchi ne rahe chhe e koik bijana khayal ma
which can be translated to :
Mujh par sitam dha gaye, meri ghazal ke sher,
Padh padh ke kho rahe hai wo kisi aur ke khayal mein
A similar emotion as conveyed by Saahir, about a lost passionate love affair, can be found in the following 4 lines that he wrote for a song :
Tumhe bhi koi uljhan rokti hai peshkadmi se,
Mujhe bhi log kehte hai ki ye jalwe paraye hain,
Mere humraah bhi rusvaaiyaan hai mere maanzi ki,
Tumhare saath bhi guzari hui raaton ke saaye hai
A Gujarati poet - Gani Dahiwala in a very famous Gazal of his says this about comparison of his love with the beloved who got separated as :
Tame Raaj Raani na Chir sam, Ame Rank Naar ni Chundadi,
Tame Tan par raho ghadi-be-ghadi, ame saath daiye kafan sudhi
which can be translated as :
Tum ho jaise kisi maharaani ke vastr-aabhushan, hum hai gareeb naari ki chunari,
Tum rehte ho tan par pal-do-pal, ham saath dete hai kafan tak.
Gulzaar, who has written many memorable songs in his long career as poet and who has written some of the most contemporary songs at all times writes in one of his early works about the way of living in this world :
Jab bhi ji chaahe nayi duniya saja lete hai log,
ek chehre pe kai chehre laga lete hai log
And this incompleteness of things that always remains with everyone and that is always beautifully summrized by poets and can also be seen in Nida Fazli's beautiful words :
Kabhi kisi ko mukammal Jahaan nahi milta,
Kahin zameen to kahin aasman nahi milta

Alvida

सब सपने पूरे होने पे सुंदर लगे ये ज़रूरी तो नही,
कई ख्वाब अधूरे अच्छे है, पूरे हुए जो वो पूरे तो नही,
तुम दूर रहोगे पर खुश तो होगे ये सोचता रहता हू,
पर संभाल ना पाऊँगा उन सपनो के बोझ जो सहता हू,
कुछ जो साथ देखे थे,
वो ख्वाब तुम्हारे पास छोड़ के जाना चाहता हू

फिर से देखना उन ख्वाबों को अकेले मेरे बिना,
ज़िंदगी कितनी तेज़ कहा चली आई समझ पाओगे,

वो शुरुआत के दिन के थे,
दुनिया से परे, चाँद पे ठहर,
रोशनी में नहाया एक अकेला घर बनाने के ख्वाब थे,
कुछ और दिन ये ख्वाब देखोगे तो घर को जलता पाओगे,
तुम उसकी आग अपने तक ही रखना,
उस आग की तपिश में गर्म महसूस नही करना चाहता हू,
वो ख्वाब तुम्हारे पास छोड़ के जाना चाहता हू,

फिर वो ख्वाब देखा था
जो एक नन्ही परी के नन्ही मुस्कान का था,
वो ख्वाब में चमकती उन आँखों को फिर से देखना,
वो भूरी आँखों का रंग
उम्र के उस छोर पे भी मेरी आँखों सा दिखता रहेगा,
रिश्तो के नाम से पुकारती आवाज़ सुन, आँसू रोक नही पता हू,
वो ख्वाब में तुम्हारे पास छोड़ के जाना चाहता हू

और भी हज़ारों ख्वाब है,

कुछ ख्वाब जो जन्मे थे सुनहेरी सुबह में
दो जोड़ी पैरो के मिल जाने से,
कुछ रसोई में छोन्के से,
कुछ रुपेहरी धोखे से,
कुछ जो चले थे साथ चाँदनी में पत्तो पे,
कुछ बारिश में गर्म चाय के प्यालो से बरसे थे,
उन ख्वाबों का बोझ हमेशा ना उठा सकता हू,
वो ख्वाब में तुम्हारे पास ही छोड़ के जाता हू,

नही छोड़ा तो,
तुम बिन दिल पे बोझ बने रहेंगे,
तुम ले जाओ अपने साथ उन्हे,
तुम्हारी तो आदत है मेरे ख्वाबो को मुस्कान देने की.

નામ ભુસાતા નથી - A gujarati Poem

હૃદયના ખ્વાબ ઍક જીવન મા સમાતા નથી,
હાથ ધોવાથી હમેશા કાઇ નામ ભુસાતા નથી

લાખ કરી લે કોશિશ, તૂ મન ભરવા ની અહી,
તળ વગર ના વાસણ છે, કદી ભરાતા નથી,

રખડી આખો દાડો ઘણા સૂરજ નામાવ્યા અમે,
પણ અમાસી ચાંદનીથી અંધારા જાતા નથી

કેટલા જીવી ગયા, કઈ સાથ લઈ જાતા નથી,
કફન મા લપેટાઈ , કોઈ શબ રેહતા રાતા નથી.

Interaction with Passport office

Has anyone dialed this … what a weird call center system they have for voice response …..
Dial the number (Randomness of option was quite remarkable)
Dial “0” to continue (and no other option)
Dial “5” for Hindi / Dial “7” for English / Dial “4” for Something I don’t remember
Dial “9” for fresh passport / Dial “8” for existing appliacation
And then there is no way to talk to a customer service, dial any number and you are disconnected with a “thank you”. :D
Then I call up the local desk to ask, what if my mom doesn’t have any address proof of this place where we are living?
“Achha to aapki jo ye mataji hai , wo Pooone mein reh rahi hai ya GuuujRaaat mein?”
“Sir Pune mein”
“Kitne Bakhat se ?”
“Sir…”
“Kitne samay se aapki maataji, poona mein reh rahi hai?”
“Sir 14 months”
“Achha, phir 14 mahina to bahut lamba time ho gaya na, koi address proof nahi banvaya?”
“Sab mere naam pe hai”
“mataji ki umar kya hai?”
“61”
“Achha, unke phir to School living aur birth certificate wale document bhi nahi hoge?”
“Sir School leaving hai”
“Par address proof nahi hai?”
“Nahi sir”
"Address proof to chahiye" Click ... phone disconnects
And suddenly I realized, baaki sab call center mein they call me “Sir” :)
GOI rocks ! Reminds me of Office Office :D

नफ़रत का ज़हर

आँखों में नफ़रत का ज़हर, होठों पे क्यों ये बात हो,
प्रहार करो गली-मुहल्ले से, अब ना कोई पाक हो,
जिस ओर से चली थी गोलिया, रातों के अंधेरे में,
अब लुपाचुपी खेल रहे है, कुछ बच्चे वहाँ सवेरे में,
तान में बँधूक उनपे कैसे कहु के तुम ही सपोले हो,
घर जलाती आग की लपटे हो तुम, तुम ही शोले हो,
ढूँढ नही पाए हम, जिसने ताज-कश्मीर जलाया था,
नादानो तुम्हे मार, कैसे में कहु के दुश्मन सॉफ हो,
जो आतंकी बरसात थे लाए, वो सरहद पार से आए थे,
तुम भी तो सरहद पार रहते हो, कैसे तुम बेगुनाह हो?
जो बहा मेरे देश के ताज पे, वो खून भी तो बेगुनाह था,
खून के बदले खून मिले, अब आँख के बदले आँख हो,
एक फ़र्क जो मुझमें-उसमे में था वो मिटा के क्यों कहु,
प्रतिशोध की ज्वाला में अब तू-दुश्मन जलके राख हो
तुम्हे ज़्यादा जाना तो नही पर बारूद ख़ाके जीते होगे,
नरसंहार की बातें कर तुम रोज़ हमको खाते पीते होगे
कैसे मानु बीमारी और भूख से वहाँ कोई मरता ना होगा,
कैसे बोलू सब एक से हो, चाहे दिखते तुम सौ-लाख हो,
तुम भी भोले नही हो, और में भी चुप नही सहने वाला,
एक दूसरे की मौत की बातें करते रहेंगे जब भी रात हो,
पर आज अगर तुम आए हो में क्यों सियासाती खेल रचु,
क्यों कहु सब मरते है मारे पर हम में ना कोई बात हो,
आओ बैठे सब पुराने घाव उधेड़े, आओ, बैठे बाते करले,
आओ यहाँ देखो तुम जो घाव तुम्हारे बच्चों ने छोड़े है,
आओ अब देखो की सारे सपने उन्होने जो अधूरे तोड़े है,
आओ अगर बात नही करेंगे तो कैसे ये समज पाओगे,
नही रोकोगे संतान जो अपनी, तुम भी यूँ मर जाओगे,
आओ बैठ के समजता हू, तुम देश नही सियासत हो,
तुम अमन के प्रेमी रहे नही, बेअकल एक रियासत हो,
तुम अपने लोगो को हर सियासत सा बेच के खाते हो,
जो मुर्दो पे वोट बनाए तुम ऐसी अनोखी एक जात हो,
हम बात करने को राज़ी है, हम लोगो से दिल जोड़ेंगे,
तुम लोगो को बहकना मत, नही ये सोच हम भी खो देंगे,
आँखों में नफ़रत का ज़हर, होठों पे क्यों ये बात हो,
प्रहार करो गली-मुहल्ले से, अब ना कोई पाक हो,

A Girl Too Ordinary

A girl meets a boy, so we see all these stories start,
She is always beautiful and he, charming and smart,
First looks, the flying sparks, tells her he is the one?
Then comes the fights sweet, tender love, and all fun,
The hero fights the world for her love, she waits for him,
And they live happily ever after, live to fulfill their dream,
Didn’t you believe in all that you read ever since a child?
Didn’t you want adventures too in passions running wild?
But when does it happen outside the stories that we read?
There are no prince charming and no Cinderellas to be wed,
Let me tell you a story less glamorous, a story too ordinary,
Of a little girl so very unlike Cinderella, a girl, too ordinary,
There would still have been a boy in the town running awry,
Who, for her, might have made a good groom with a dowry,
A girl whose lips would not make a perfect smile if they were to,
But she would have had smiled heartily nonetheless if she were to,
She might not have charmed the many men out there waiting,
But with efforts, she might have got someone’s heart beating,
She would have done this and she would have done that in her village,
(I know this would not rhyme with the poem like her life out of sync),
Still,
“She would have” If only, She was allowed to be born.

Fir Wohi

Relationships leave a life long impact. Even when they are left like an unfinished painting, they put their colors in our life. They were meeting each other after almost 30 years since they broke off. She was a lively young girl back then and they were madly in love with each other. Life did not go as planned, infact there was a little planning involved. And they got separated, promising never to cross each other's roads. They did not cross until this day after years, when everything they had in the past was just a blurred memory. They chose different partners, had a great life, good children and occasionaly they remembered each other. Today they crossed path, unintentionally, when they stood infront of each other, he was speechless. He could not say much. She was just like the way she had always been, happy about the past they had, not sorry about the past they did not. Future would be an End soon, and things will not matter. She still smiles and looks at him just the way she always did.


थोड़ी समज, थोड़ी झुर्रिया और थोड़े सफेद बालों में,
तुम बदली इतनी भी नही, वक़्त में क़ैद सालों में,
"काफ़ी देर हो गयी, क्या लाए हो?" तब सा पूछ के,
तुम वैसे ही मुस्कुराती हो अल्हड़ से इन सवालो में


मिलना घर के पीछे, पौधो को पानी देने के बहाने,
याद अभी है तुम्हे सोच के सुनना जगजीत के गाने,
फिर माथे पे छोटे चाँद सी बिंदी लगा तुम आती थी,
बचकानी सी बातों पे, तुम खुश होके मुस्काती थी,
थे कितनी दोपहरी ख्वाब, गन्ने के रस के प्यालों में,
तुम बदली इतनी भी नही, वक़्त में क़ैद सालों में,

पोते को अपने, "लेटेस्ट बॉय-फ्रेंड" कह मिल्वाति हो,
सालों के मेरे गम को तुम, यूँ मस्ती से झुठलाती हो,
मेरी भी एक पोती है, जिसकी तुमसी बिल्कुल आँखें है,
आशा करता हू वो जीवन का नज़रिया तुमसा पाती हो
आज में जीती रहती हो, तुम जीती थी कब ख़यालों में
तुम बदली इतनी भी नही, वक़्त में क़ैद सालों में,

आज तुम्हारी वोही तस्वीर, उभरी है उमर के जालो से,
तुम्हारे होने से होना था, अब गीत नया, नये तालो में,
तुम जैसा ना हो पाऊँ तो भी, तुम्हारे संग रहा था कभी,
था जीवन का एक हिस्सा खुश, मेरे कल के तालों में
थोड़ी समज, थोड़ी झुर्रिया और थोड़े सफेद बालों में,
तुम बदली इतनी भी नही, वक़्त में क़ैद सालों में,

उम्मीदों का शहर

आस के वीरान जंगल में, उम्मिदो के कई शहर बसते है,
सब बाशिंदे, ख्वाब से सिकुड के घरों में महफुज़ रहते है,
भरे भरे से हमेशा, उम्मिदो के गाँव, कभी खाली नही होते,
हर घर यहाँ, अपने ही या किसी और के हाथों से बनते है,

जब धीरे से, आहट को दबाए, खोला पहले घर का दरवाज़ा.
देखा तो अपने माँ-बाप के ख्वाबों में मुझको बनना था राजा,
फिर दूसरे घरों की और, एक बॉज़ के साथ बढ़ता रहा तो,
देखा मेरे बच्चों के भी ख्वाब भी इसी शहर में ऐसे रचते है,
उनके लिए कुछ अप्रतिम सी उँचाइयाँ सर करनी है और कही
संगनी की खातिर घरों में अलग ग़ज़लें-महल भी पलते है,

फिर इस शहर के किसी कोने में लावारिस एक खन्डर देखा,
सूम-सान सा लग रहा था तो मैने झाँक के थोड़ा अंदर देखा,

एक टूटी चार पाई पे, एक बीमार, अपाहिज़ उम्मीद पड़ी थी,
सालों पहले कुछ कर दिखाने की, मुझमे जो एक ज़िद बड़ी थी,
भूल गया था कब से इसके बारे में यहा फिर मिल गये हम,
तुमको विकलांग बनाते वक़्त जैसे, दोनो हीथे सहम गये हम,
फिर आज यहाँ उम्मिदो के खंडहर में भूले यार से मिल गये हो,
ये जो पर तुम्हारे, मैने अपने हाथो से, गीत लिख सवारे थे,
अब इन परो के पास मखियाँ की आवाज़ पे जुगनू जलते है,

मेरे इस शहर में बस ये घर मेरा है

छत के उपर जब जाके देखता हू,
कितना बड़ा हो गया है ये शहर कुछ सालों में,
कितने घर, कितनी इमारतें,
कितने लोगो की उम्मीदें,
पर ये शहर तो मेरा था ना?
और मेरी उम्मीदें यहाँ,
इस खंडहर के कोने में सीमित क्यों है?

सोचत हू अबकी बार ये शहर जला दूं,
और फिर तिनका तिनका जोड़ के इससे अपने,
नये पंख बनाऊंगा
अबकी बार ये उम्मीदों का शहर मेरा होगा

"तेरा सजदा दिन रैन"

Wrote at the time of SRK – Thakrey Controversy.
चाँद तोड़ लाने की, सब लुटाने की बातें,
में कर नही पाता तुम्हे रिझाने की बातें,
तुमसे होगी सुबह, होगी शाम तुम्ही में,
लो, मेरी भी लगती है हर दीवाने सी बातें
प्यार तो मुझे भी एक मुद्दत से रहा है,
पर रोकती रही है, कुछ ज़माने की बातें
में करना तो चाहता हू, इश्क़-प्यार की,
पर आ रही उमड़ के खोने-पाने की बातें,

कुछ मरे थे सैनिक, कल जो फिसली चट्टान थी,
शहीद भी ना हो पाए वो जो बहादुरकी जान थी,
तुम पूछती हो, गीत कोई प्रेम का गाने को,
"रंग बसंती" सोच "केसरिया बालम" गाने की बातें

कल रास्ते पे देखी सब गुलाब की थी बिक्री,
बेचने वाला सुलझा रहा, जो लाल फ़िक्र थी,
में भी गया था लेने फूल पर करके आया हू,
चारफूल बेच, मिलेगा जो वो खाने की बातें

जल उठी थी कुछ तस्वीरें धर्म-धरोहर के नाम पे,
रास्तो पे टोलिया हंगामी सरकार से थी रौफ में,
ये लोग बादशाहो को भी डरा देते है, कैसे करू इनसे,
में "तेरा सजदा दिन रैन" नही कर पाने की बातें

चाँद तोड़ लाने की, सब लुटाने की बातें,
में कर नही पाता तुम्हे रिझाने की बातें,
तुमसे होगी सुबह, होगी शाम तुम्ही में,
लो, मेरी भी लगती है हर दीवाने सी बातें

सब की तरह मुझे भी छुपाना आ गया है अब,
दिल में हो दर्द-सोग, मुँह पे तुम्हे पाने की बातें

A Sharp Turn

I Get up, I Brush my teeth, I have a quick breakfast, I Spree,
I take the road, straight from the house, the only one I see,
I take a bus to the office, and work the daily chores there,
I take a bus back to home and eat again to have a sleep bare,
I am programmed to live a life ordinary,
I am programmed to dream extra ordinary,
I know, one day I will touch the sky,
I know, one day I will soar too high,
I know one day, I will live the moments I dream,
I know one day, the world will believe what I say,
But till then,
I Get up, I Brush my teeth and I have a quick breakfast

One day, a day like no other, in office I got a slip pink,
I thought he will laugh after handing it to me and wink,
That one day, was a day like no other, and all it changed,
I got up late, I did not spree and on road I was deranged,
I did not have to move straight, I took an unexpected sharp turn,
Never took that way, didnot know what was on fire there, to burn,
A little boy moved ahead of me with a kettle of tea in a small palm,
Over a sewage pipe, to a cramped house with thick air of uneasy calm,
There a few girls barely of the age for their profession stood,
I remembered my child, she would have made them a company good,
But their company was sweat that trickled down the bodies old,
I thought what would it be, like a vegetable, if one gets sold,
Out came I with disgust for the world, and saw a friend entering,
There in that sharp turn, the guilt of my world found sheltering,
I walked down a little more through the crammed alleys small,
Poor, unfortunate, darkly despaired, crooked, I saw them all,
There he was sleeping a boy in his teens, above the terrace facing sky,
I went to him and tried to peep in his thoughts, dreams soaring high,
He too had been in that crammed room once to sell the hot teas,
Everyday he gets up, brushes his teeth and to work he sprees,
He is programmed to live a life less ordinary,
He has programmed himself to dream extra ordinary,
In the wild world, when I will move out of this sharp turn,
He will be competing with me, for the bread and work to earn,
I know I would always be more fortunate and had my own days,
But friend I wish you and your likes make it big in your ways,
Friend, trust me, your world shakes my belief in humanity,
Friend, trust me, your resolve, makes my pride my vanity
Friend,
As I move out of the sharp turn back to my straight road,
As I move out to a new job, to my beautiful world broad,
I promise I will never forget what I saw in that sharp turn,
I promise I will never feel bad for things that I wont earn,
I will Get up,
I will Brush my teeth,
I will have a quick breakfast,
I will Spree,
I will take the road straight from the house,
And will remember thee. 

Lori

Just a Try at a lori :)

You can change Happy's name to your child's name ! :)

ह्म्म हँ हुहम्म ह्म्म ह्म्म्म्ममम
नींद आ सुला जा, हॅपी संग गा जा
आँख बँध कर ले
चाँद तू बुझा दे,
परिया बुलाके कोई,
संग लॉरी यूँ गादे,
ह्म्म हँ हुहम्म ह्म्म ह्म्म्म्ममम
नींद आ सुला जा, हॅपी संग गा जा
चुपचाप आँखें मुन्दे,
सिरहाने मेरे सिने को डाल दो ,
फिर सपनो के संग ढूँढे,
धक से धड़कन की ताल को,
चल सपनो की दुनिया में,
जाके नया सूरज यूँ साधे
ह्म्म हँ हुहम्म ह्म्म ह्म्म्म्ममम
नींद आ सुला जा, हॅपी संग आ जा
कहानियों के जादू मे वहाँ ,
उड़ती कालीने है चराग़ भी,
बोलते खरगोश भी है, जहाँ,
बढ़ती झूठ पे है नाक भी,
बाँध कर आँखों को तू भी,
वहाँ उड़ पंख नये बाँधे,
परिया बुलाके कोई,
संग लॉरी यूँ गादे,
ह्म्म हँ हुहम्म ह्म्म ह्म्म्म्ममम
नींद आ सुला जा, हॅपी संग गा जा

A few lines just like that

जो समजाते है, हिम्मत ना हारो, देखो वो चिटी बार बार गिर फिर चढ़ती है,
वो कहा रोकते है कदम, जब पैरो तले कुचलने उनके, वो चिटी आगे बढ़ती है
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गरम चाइ की चुस्की पे टीवी देख, वो बोले क्या बदलेगी? पागल सरकार है ये,
दूसरी जगह पे फिल्म नयी आ रही है, बदलो चॅनेल इनकी लड़ाई तो हर बार है ये

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वो नोटो की गड्डी हरी हरी सी, घर के टेबल पे रख मुस्कुरा रहा था मेरी कमज़ोरी पर,
कल रात बन मोटा थानेदार खूब खुश हुआ था, मुन्ना नानी की मोरनी वाली चोरी पर,
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एक पल आती, एक पल जाती, हर बार नयी रेतों पे उछल्ने,
पानी के बुलबुलो सा साहिल पे, में जीवन की लहरो पे जीता हू

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कुर्ते से निकले धागो में,
सिगरेट की राख में,
कुर्सी की खाली "किचूड़" आवाज़ में,
कॉफी की कड़वी महेक से .
आज भी अख़बार को कोने कर
तुम यादों की मेज़ से रसोई घर में आ जाते हो

दुनिया की गोलाई

एक ग्यानि ने खोज निकाली थी दुनिया की गोलाई एक दिन,
हर मौसम चक्कर काटे है, फिर धरती ने सूरज के निश दिन,
लाख-करोड़ भी कीमत अपनी, शून्य-गोल से ही तो पाते है,
एक प्रतिबिंबित गोले के बिना तो सब रातें अंधियारी रातें है,

बचपन भी तो गोद में अपनी, खेलने लाया था गेंदे-पहिए गोल,
और जवानी भी लाई थी कुत्सित अनकही कितनी गोलाई तोल,
हाथो में अंगूठी थी गोल प्यार की, बच्चे के गले में लॉकेट गोल,
जा बुढ़ापा नापोगे तो गोल चस्मे के पीछे बहते कुछ आँसू गोल,

ज़िंदगी में कुछ उपलब्धिया अप्रत्यक्ष तो कुछ साफ पुरस्कृत है,
छाति पे चमकते मेडल हो या प्यार भरी ये आखेहो, सब वृत है,
ध्यान देअगर जीवन को देखोगे जब, उसकी गोलाई को समझोगे,
अंत भी तो शुरुआत है कोई, समयचक्र की परच्छाई को समझोगे

व्यंग भरी कलाकारी

खुद को अंजान बना दे ऐसी, मुखौटो की तरकीब अनोखी होती है,
दुनियादारी के बाज़ार में बिक्री, बस इस खोटी चीज़ की होती है,
नये ज़माने के संग जीनेको हर बार नया मुखौटा चुन सकते हो,
जश्न में खुशाली के रंग तो मातम में झुर्रिओ से उसे बुन सकते हो,

राम-मुखौटा पहन के वादे झुटे, दशरथ जानकी को दे आ पाओगे,
फिर अंधियारी रातों में दुशाशनि-मुखौटे से लाज नोच खा पाओगे,
बहुत निर्धन लाचार सी लाशें, यहाँ जीवन के मुखौटो में फिरती है,
चाहो तो बलवान मुखौटा पहन उन कमज़ोरो को दबोच ला पाओगे

कोई जो पूछे "कौन हो तुम" , खुद का चेहरा ले जाना बैमानी होगी,
मुखौटो के भी कुछ ल़हेजे होते है, उसकी कभी ना नाफ़रमानी होगी,
सच की आए बात भी जब भी, एक बचकानी सूरत ले जाना तुम,
"में नही था उस कायर चेहरे के पीछे", कह कर के जान बचाना तुम

इस दुनियादारी का चलन आसान नही है, एक बक्सा साथ ले चलना है,
एक भी मुखौटा छूट ना जाए, ठून्स ठूंस हर धोके को चेहरे पे भरना है,
मुखौटो की दुनिया मे ज़िंदगी जीना दोस्त एक व्यंग भरी कलाकारी है,
"में ऐसी दुनिया का नही" कह रहे हो तो, तुम्हारी कला भी चमत्कारी है

जो भी हो जब भी हो वो ही सही

Not very usual - Something totally surreal from me today.

सुबह हुई, सूरज आज चाँद सा चमक के आसमान पे आया है,
सुबह कभी ऐसी ना थी, ना दिन है ये ना रात का अंधियारा है,
सारे घर जो खिड़की से देखता हू में , सब मेरेघर जैसे बेरंग है,
सब में जैसे खिड़की पे में ही खड़ा हू, मुझसा ही सबका रंग है,
और खाली दीवारों पे तस्वीरें है, मेरी मेरे साथ, पर में जानता हू,
के मैं कौन हू, मेरे पिता मेरा भाई कौन, में सबको पहचानता हू,
और मेरी मेज़ पे चाइ पी रहा है एक परिंदा पहचाना सा कोई,
उसी प्याले की दूसरी ओर, उसे चुस्की लगा के चुपचाप ताकता हू,
एक ख़याल है, शायद मेरे किसी दोस्त से उसकी शकल मिलती है,
और दिन की बढ़ती धूप के साथ, आयने सी ये बस्ती पिघलती है,
सब जो था एक पल, अब अब्र सा बरस के बह जाता है रास्तो में,
कोई हैरान नही बहने से, सबकी सक्शियत एक दूसरे में सिलती है,
गौर से देखने की मुझे कभी आदत ना थी, पर आज ये क्या हो रहा है,
देखता हू ये की जो में जानता हू में हू वो बेचेहरा बदन चेहरे बो रहा है,
अब शक है की बदन भी है या वो भी सिर्फ़ एक ख़याल से ढाला है,
ये कौन से जगह है, कहा हू में, क्या मिला है मुझे और क्या खो रहा है,
ये जगह कैसी है? कहा हू आज? कल जब में था, तब था भी या नही?
कोई फ़र्क नही है किसी में यहाँ, सब में हू, और मुझे में सबही है कही,
ये दुनिया को खुद में, पाके सब दूख प्यार इंसानियत की बाते बैमानी है
क्या ये जन्नत है खुदा? क्या तुम हो? जो भी हो जब भी हो वो ही सही

रात छोटी है

Not my forte though, trying to weave a slight tinge of passion in romance :).

रात छोटी है, जल्दी ख़त्म हो जानी है,
आँच के नीचे, बाति भस्म हो जानी है

रोशनी बादल के हुक्के की गड़गड़ाहट से
उतर इंद्रधनुष कोई दिलचस्प हो जानी है,
देखता तुम्हे हू, यूँ ओढ़े चाँदनी की चादर,
बूँद पसीने की, जम जिस्म हो जानी है

रात छोटी है, जल्दी ख़त्म हो जानी है,

आओ, ना डरो तुम, ज़माने की राय से,
आज की बग़ावते, कल रस्म हो जानी है,
आँखों की अय्यारि, मुस्कुराहटें ये आम,
आशिक़ के वास्ते तिलिस्म हो जानी है

रात छोटी है, जल्दी ख़त्म हो जानी है,
आँच के नीचे, बाति भस्म हो जानी है

(Tilism is enchantment / magic)

एक मामूली मोहरा

काली-सफेद सी बिछी बाज़ी पे,
अपनी सेना के आगे खड़ा,
एक मामूली मोहरा,
एक पायदल की होड़ में,
इंतेज़ार में सर उठा के,
बादशाह पे उठे वार सिने पे झेलने खड़ा,
एक मामूली मोहरा,

खूद एक सफेद खाने में खड़ा काला मोहरा,
हाथ में तलवार लिए खड़ा है, आँखे गड़ाए दुश्मन पे,
और फिर खिलाड़ी के हाथों से उसकी सोच पे,
आगे बढ़ता है, कदम-ब-कदम, एक नये खाने में,
खुद फ़ना होना है राह में, या अपने से किसी और रंग के,
किसी एक मामूली मोहरे को ख़त्म करना है,
किस्मत हुई तो एक बड़े मोहरे से भी खेल जाएगा ये,
सफ़र के अंत तक बचाता रहेगा बादशाहो को वो,
फ़ना होके फिर एक नयी बाज़ी पे बिछेगा,
पर उस बाज़ी पे भी वो रहेगा एक मामूली मोहरा,
बादशाह बनने की चाह भी कभी बादशाह ना बनाएगी उसे,
ये बाज़ी हार भी गया, मारा भी गया किसी गोरे मोहरे से,
तो भी सिकश्त उसकी ना होगी, क्योंकि,
मामूली या ख़ास कोई भी,
मोहरे कभी शिकस्त- झदा नही होते है,
हार और जीत सिर्फ़ खिलाड़ी की होती है

Updating blog : Uttarayan - A Poem written on 14th Jan

वो दिखताबड़ी हवेली सा, कोई बुढ्ढि सहेली सा, एक पहेली सा घर,
पॅहरो की धूप-छाँव में लगता था जैसे कोई ख्वाब रुपेहली सा घर,
वो घर की जिसकी बेफ़िक्र छत से बचपन की हिकायते जन्मी थी ,
वो कॉंक्रीट और ईंटो का ढाँचे सा , वो उम्मीदों की भारी थैली सा घर,

भाई का बड़प्पन, मेरा लड़कपन, गुज़रे से कल में साँस लेता है वहा
कटी पतंगो को पकड़ने आज भी पीछे किसिका बचपन दौड़ता है वहा
छत के उपर से गुज़रते तार में आज भी फसते है किसी और के रंग,
हम दो भाई बारी बारी से जहा फिरकी पकड़ते थे और उड़ाते थे पतंग,

फिर अपनी पतंगो को छोड़ मेहता जी की छत पे दौड़ जाते थे हम दोनो,
जब भी वाहा कोई लूट किसी पतंग की दिख जाती, लड़ते थे हम दोनो,
बड़े खुश हुआ करते थे लड़ाई में और प्यार से जुड़े पतंग-माँझे में हम,
और फिर बड़े होते ना जाने कहाँ से वो लूट पतंगो की घरो में बदल गयी ,
कब ये रिस्ते भी काग़ज़ की पतंगो से फटने लगे, डोर भी कटती गयी ?
फटी पतंगो को तब हम चावल के उबले दानो से रफू करके उड़ाते थे,
रिस्तो को जो रफू कर दे ऐसे चावल, अफ़सोस हम ना कभी उगाते थे,
इस संक्रांति शहेर से में आया हू,
दीवार से उसका घर और मौत से मेरा भाई जुदा है,
देखता हू यादो के भूतकाल से,
छत के उस हिस्से में, मेरा बेटा पतंग लूटने कुदा है
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