Sunday, April 28, 2013

gazal - एक नज़र ही ताक पाया

एक नज़र ही ताक पाया आसमान को मैं  सफ़र में,
थे हज़ारों ख्वाब जलते रोशनी के उस पहर में,

राख बन के जो उड़ा है, खून अपने देश में तो,
है शहीदी रंग लाई खूब देखो इस गदर में,

शाख एक छोटी बसंती बोझ मोटा ढो रही थी,
खार सहती खाल पे और, राह महकाए शहर में,

चंद लम्हें बँध सहमी सी कली से चुप रहें थे
शेर बन के अब खिले है, खूबसूरत सी बहर में,

उनके घर में भी सुना है, दाल रोटी पक रही है,
माँग कर सोना गये जो, ब्याह की खातिर महर में,

आप अपने लश्करो से हार कर लौटा सिकंदर
शाह ऐसा था भिखारी दास्तानों की नज़र में,
AddMe - Search Engine Optimization